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CTET :- HINDI PEDAGOGY NOTES

CTET HINDI PEDAGOGY

📚  हिंदी भारत की एक "राजभाषा" है ना की राष्ट्रभाषा

📚 संविधान की 8वी अनुसूची में 22 भाषाएं शामिल है। असमिया, बांग्ला, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, ओडिशा, पंजाबी, संस्कृत, सिंधी, तमिल, तेलगु, उर्दू, बोडो, संथाली, मैथिली, डोगरी 

📚 भारतीय संविधान के अनुसार English language एक सहयोगी प्रशाशनिक भाषा है। 

📚 शास्त्रीय भाषाएँ - तमिल, संस्कृत, कन्नड, तेलगु, मलयालम, उड़िया/ओडिया

( वर्तमान में छ: भाषाओं को वर्ष 2004- 2014 तक शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्रदान किया गया जो इस प्रकार हैं-

तमिल (2004), संस्कृत (2005), कन्नड़ (2008), तेलुगू (2008), मलयालम (2013), ओडिया (2014)

शास्त्रीय भाषा के वर्गीकरण का आधार:

फरवरी 2014 में संस्कृति मंत्रालय (Ministry of Culture) द्वारा किसी भाषा को 'शास्त्रीय' घोषित करने के लिये निम्नलिखित दिशा निर्देश जारी किये-

⭐️ इसके प्रारंभिक ग्रंथों का इतिहास 1500-2000 वर्ष से अधिक पुराना हो

⭐️ प्राचीन साहित्य/ग्रंथों का एक हिस्सा हो जिसे बोलने वाले लोगों की पीढ़ियों द्वारा एक मूल्यवान विरासत माना जाता हो।

⭐️ साहित्यिक परंपरा में मौलिकता हो।

⭐️ शास्त्रीय भाषा और साहित्य, आधुनिक भाषा और साहित्य से भिन्न हैं इसलिये इसके बाद के रूपों के बीच असमानता भी हो सकती है।)

📚  RTE मातृभाषा के माध्यम से अधिगम की अनुसंशा class 8th तक के लिए करता है।


अधिगम एवं अर्जन (Learning and Acquisition)

💖 अधिगम का अर्थ होता है – सीखना एवं अर्जन का अर्थ होता है- अर्जित करना या ग्रहण करना |

💖  भाषा अधिगम से तात्पर्य उस प्रणाली से है, जिसमे बच्चा स्वंय प्रयास करता है, तथा उसके लिए कुछ आवश्यक परिस्थितियाँ होती है। अधिगम विद्यालय या किसी संस्था में होता है

💖  भाषा अर्जन अनुकरण के द्वारा होता है, बालक अपने आस-पास के लोगो को बोलते लिखते पढ़ने देखता है, तथा अनुकरण के द्वारा उन्हें सीखता जाता है। इसमें बच्चे को कोई प्रयास नही करना पड़ता है। भाषा अर्जन की प्रक्रिया सहज और स्वाभाविक होती है।


भाषा अर्जन से संबंधित महत्वपूर्ण बिन्दु :

💖 भाषा अर्जन मुख्यतः मातृभाषा का होता है, अर्थात मातृभाषा अर्जित की जाती है, न कि सीखी जाती है।

💖 भाषा अर्जन व्यवहारिक पुद्धिति है, तथा इसमे अनुकरण को मुख्य भूमिका होती

💖 भाषा अर्जन मे बच्चे को कोई प्रयास नहीं करना पड़ता

💖 भाषा अर्जन की प्रक्रिया सहज और स्वाभाविक होती है।

💖 इसमें किसी अन्य भाषा का व्याघात ( role ) नहीं होता।

💖 इसमें किसी व्याकरण की आवश्यकता नहीं होती !

💖 भाषा अर्जन मे सर्वाधिक महत्व समाज का होता है।

💖 भाषा अधिगम औपचारिक शिक्षा के द्वारा किया जाता है।

💖 भाषा अधिगम विद्यालय से प्रारंभ होती है।

💖 भाषा अधिगम मे बच्चे को प्रयास करना पड़ता है

💖 भाषा के नियम सीखे जाते है।

💖 व्याकरण की आवश्यकता होती है?

💖 भाषा अधिगम के द्वारा मानक भाषा सीखी जाती है

💖 भाषा अधिगम मे शिक्षक विद्यालय, पाठ्यक्रम, पाठ्य पुस्तके शिक्षण पद्धतियाँ आदि की आवश्यकता रहती है।


भाषा से संबंधित कुछ मनोवैज्ञानिकों के तथ्य

पावलव और स्कूिनर  →  नकल व रहने से भाषा की क्षमता प्राप्त होती है।

चॉम्सकी  → बच्चों में भाषा अर्जन की क्षमता जन्मजात होती है।

पियाजे  → भाषा अन्य संज्ञानात्मक तंत्रो की भांति परिवेश के साथ अन्तः क्रिया के माध्यम से ही विकसित होती है।

वाइगोत्सकी  →  बच्चे की भाषा समाज के साथ सम्पर्क का ही परिणाम है।


  — अति महत्वपुर्ण बिन्दु–

→ मानक भाषा अथवा द्वितीय भाषा सीखने मे मातृभाषा का व्याघात होता है ।

→ स्कुलू आने से पूर्व बच्चे अपनी मातृभाषा का प्रयोग जानते है।

→ बच्चे स्कूल आने से पूर्व ही अपनी भाषायी पूँजी से लैस होते है।

→ गृहकार्य (Homework) बच्चे के सीखने विस्तार देता है।

→ प्राथमिक स्तर शिक्षा का माध्यम बच्चे की मातृभाषा होना चाहिए।

→ प्राथमिक स्तर पर बच्चे की भाषा सिखाने का मुख्य उद्देश्य यह होता है कि बच्चा जीवन की विभिन्न परिस्थितियों में भाषा का प्रयोग कर पाये

→ कक्षा मे बच्चे मातृभाषा को सदैव सम्मान देना चाहिए।

→ कक्षा मे भाषा की विविधता संसाधन के रूप में कार्य करती है।

→ प्राथमिक स्तर बच्चे को भाषा प्रयोग के अधिक से अधिक अवसर देने चाहिए। यह भाषा शिक्षण के लिए सबसे अधिक आवश्यक है।

 

भाषा शिक्षण के सिद्धांत (Theories of Language Teaching)

अनुबंध का सिद्धांत:- शैशवावस्था में जब बच्चा किसी शब्द को सीखता है, तो वह उसके लिए अमूर्त होता है, इसलिए किसी मूर्त वस्तु से उसका संबंध जोड़कर उसे शब्द सिखया जाता है, जैसे शब्द 'रोटी' बोलने के साथ-साथ उसे रोटी भी दिखाया जाता है

अनुकरण का सिद्धांत (Theory of Imitation) :- बालक अपने परिवार या समाज मे बोली जाने वाली भाषा का अनुकरण करके भाषा अर्जित करता है। इसीलिए यदि परिवार या समाज मे त्रुटिपूर्ण भाषा का प्रयोग होता है, तो बच्चा त्रुटिपूर्ण  भाषा हीं  सीखता है

अभ्यास का सिद्धांत (Theory of exercise) :- थांर्नडाइक ने कहा है, भाषा का विकास अभ्यास पर निर्भर करता है। भाषा बिना  अभ्यास के न तो सीखी  जाती है, और न ही उसकी कुशलता को बरकरार रखा जा सकता है


भाषा सीखने के साधन

💗 अनुकरण

💗 खेल

💗 कहानी

💗 वार्तालाप तथा बातचीत

💗 प्रश्नोत्तर


महत्वपूर्ण बिन्दु –

→ भाषा सिखाने के लिए ऐसी गतिविधियाँ करानी चाहिए जिससे बच्चे को भाषा प्रयोग एवं अभिव्यक्ति के अधिक से अधिक अवसर मिले ।

→ भाषा सीखने का व्यवहारदी दृष्टिकोण अनुकरण पर बल देता है।

→ भाषा शिक्षण मे सबसे अधिक महत्वपूर्ण भाषा प्रयोग के अवसर देना है

→भाषा शिक्षण की प्रक्रिया अन्य विषयों की कक्षा में भी चलती रहती है, क्योंकि किसी भी विषय को पढ़ाने के लिए सम्प्रेषण की आवश्यकता होती है।

→ भाषा शिक्षण में कविता, कहानियों का प्रयोग करना चाहिए ताकि बच्चे भाषा सीखने में रुचि लें।


कहानी कविता, नाटकों का प्रयोग कक्षा में निम्न उद्देश्यों की पूर्ति करता है –

✬ बच्चों को इसमें आनन्द आता है।

✬ बच्चे विषय में रूचि लेते है।

✬ बच्चे अपनी संस्कृति को जानते है।

✬ शब्द भण्डार कल्पना शक्ति चिन्तन, सृजन आदि कौशलों का विकास


भाषा के कार्य एवं इसके विकास में बोलने एवं सुनने भूमिका

भाषा के कार्य

→ भाषा व्यक्ति को अपनी आवश्यकता अच्छी भावनाएँ आदि अभिव्यक्त करने में सहायता करती है।

→ दूसरों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए हम भाषा का प्रयोग करते है।

→ सामाजिक संबंध बनाने के लिए हम भाषा का प्रयोग करते हैं।

→ नये ज्ञान की प्राप्ति के लिए भाषा बहुत ही आवश्यक है।

→ शिक्षा प्राप्त करने के लिए भाषा आवश्यकता होती है

→ दुसरे व्यक्ति की बोलों को समझने के लिए

→ अपनी कला, संस्कृति, समाज का विकास करने के लिए


भाषा विकास में सुनने की भूमिका

सुनुना भाषा विकास के निम्न क्षेत्रों में भूमिका निभाता है:- 

🔯 सुनकर ही बच्चा बोलना सीखता है। वह अपने परिवार व समाज के लोगो को बोलते हुए सुनता है, तथा उनका अनुकरण करता है।

🔯 शब्द भण्डार में वृद्धि के लिए

🔯 बोलकर ही बच्चा भाषा कुशलता भाषा, प्रवाह प्राप्त करता है।

🔯 बातचीत के द्वारा समाजिक संबंधों का निर्माण होता है।


भाषा विकास को प्रभावित करने वाले कारक

💎 स्वास्थ

💎 बुद्धि

💎 यौन भिन्नता

💎 समाजिक आर्थिक स्तर

💎 परिवार का अकार

💎 जन्मक्रम

💎 हुजन्म (जुड़वा बच्चे ) जुड़वा

💎 एक से अधिक भाषा का प्रयोग

💎 साथियों के साथ संबंध

💎 माता -पिता द्वारा प्रेरणा

 

भाषा अधिगम मे व्याकरण की भूमिका (Role of Grammar in Language Learning)

→ भाषा का व्याकरण ही भाषा का मूल रूप होता है।

→ व्याकरण के बिना भाषा का अस्तिव समाप्त हो जायेगा !

→ भाषा मे सदैव परिवर्तन होता रहता है। भाषा के इस परिवर्तन पर नियंत्रण रखने का कार्य व्याकरण ही करता है।

→ व्याकरण से भाषा में शुद्धता आती है।

→ व्याकरण से विभिन्न ध्वनियाँ व विभिन्न शब्द रूपो का ज्ञान होता है।

→ व्याकरण के बिना भाषा शिक्षण एक कठिन कार्य है।

→बच्चों को भाषा के नियम सिखाने के लिए व्याकरण की आवश्यकता होती है।

(नोट → प्राथमिक स्तर पर बच्चों को व्याकरण नहीं पढ़ाया जाता है, परंतु शिक्षक को व्याकरण का ज्ञान होना आवश्यक होता है।)

→उच्च प्राथमिक स्तर पर व्याकरण शिक्षण प्रारंभ हो जाता है।


व्याकरण शिक्षण की विधियाँ –

निगमन विधि (Declueative Method) 

→यह विधि रहने पर आधारित होती है। इसमें शिक्षक छात्रों को या तो मौखिक रूप से भाषा के नियम बता देता है या फिर लिखित रूप मे पुस्तक इत्यादि नियम दे देते हैं। तथा विद्यार्थी उन नियमों व सिद्धांतो को रट लेते हैं।

→ इस विधि में चिन्तन निरीक्षण उपयोग आदि का अभाव होता है।


आगमन विधि (Inductive Method)

यह एक व्यवहारिक विधि है, इसमें बच्चे कुछ उदाहरणों के आधार पर स्वयं नियम बनाते है। इस विधि में बच्चे निम्न चरणों से गुजरते है- 

→ सर्वप्रथम बच्चों के सामने उदाहरण प्रस्तुत किये जाते है।

→ बच्चे उन उदाहरणो का निरीक्षण करते है।

→ निरीक्षण के दौरान बच्चों में जो समान्ताएँ मिलती है, वे उन्हें नियम के रूप में स्वीकार करते हैं, इसे सामान्यीकरण कहते है।

→अन्त में वे उन नियमों का परीक्षण करते हैं।


प्रयोग विधि ( Experiment Method )

→ इस विधि में बच्चों को विद्वान लेखकों की कृतियाँ तथा पुस्तकें पढ़ाई जाती है, ताकि बच्चे भाषा के सही रूप को जान सके।


प्रत्यक्ष विधि (Direct Method)

→इस विधि में बच्चों को प्रत्यक्ष अनुभव प्रदान किये जाते है अर्थात बच्चों को विद्वान, लेखको तथा लोग जिन्हे भाषा पर पूर्व अधिकार हो, से बातचीत के अवसर प्रदान किये जाते है। यह विधि अनुकरण पर अधारित है। यह एक व्यवहारिक दृष्टिकोण है।


खेल विधि ( Play Method) 

→इस विधि मे बच्चे सबसे ज्यादा रूचि लेते है। खेल के माध्यम से बच्चो को शब्द भेद लिंग-भेद, वचन, संज्ञा आदि सिखाये जाते है।


भाषा विविधता वाले कक्षा-कक्ष की समस्याएँ

भाषा विविधता (Language Diversity) :

→भाषा विविधता को बहुभाषिकता भी कह सकते है भारत एक बहुभाषिक देश है। यहाँ हर क्षेत्र में अलग में अलग-अलग भाषाएँ बोली जाती है। जब एक ही कक्षा में अलग-अलग स्थानों से बच्चे आते हैं, तो उनकी मातृभाषा अलग-अलग होती है। ऐसी कक्षा को भाषा विविधता वाली कक्षा कहा जाता है।


समस्याएँ या चुनौतियां

✔️ यदि बच्चे की मातृभाषा हिन्दी नहीं है, तो उसे हिन्दी पुस्तकें पढ़ने व समझने मे समस्या हो सकती है।

✔️ सभी बच्चों के भावो को समझना शिक्षक के लिए कठिन हो सकती हैं।

✔️ शिक्षक को इस योग्य बनना होता है, कि वह प्रत्येक बच्चे की अभिव्यक्ति को समझ सके।

✔️ बच्चे एक दूसरे से बात करने में झिझकते हैं, क्योंकि उनकी भाषाएँ अलग-अलग है।


भाषा विविधता के लाभ –

यद्यपि भाषा विविधता वाली कक्षा में कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, परंतु फिर भी इसके कुछ लाभ है-

✔️ भाषा विविधता या बहुभाषिकता कक्षा में एक संसाधन के रूप में कार्य करती है।

✔️ बच्चो को अन्य भाषाओं के शब्दों को जानने का अवसर मिलता है।

✔️ शब्द भण्डार में वृद्धि होती है?


भाषा कौशल (Language Skills)

→ एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति की बातों, विचारों को सुनने समझने तथा अपनी बातो, विचारों भावनाओं को व्यक्त करने में जिन मुख्य कौशलों का प्रयोग किया जाता है। उन्हें भाषा कौशल कहते है।

भाषा कौशल चार प्रकार के होते है –

१. श्रवण कौशल (सुनना’

२. बोलना कौशल

३. पढ़ना कौशल

४. लिखना कौशल

(नोट – सुनना तथा पढ़ना ग्रहणात्मक कौशल है।  क्योंकि इनके द्वारा अर्थ (सूचना) को ग्रहण किया जाता है तथा’ बोलना व लिखना अभिव्यक्तात्मक कौशल है। इनके द्वारा अभिव्यक्ति होती है।)


श्रवण कौशल की शिक्षण विधियाँ –

१. सस्वर वाचन - छात्र अध्यापक तथा किसी अन्य छात्र को बातचीत करते हुए सुनता है।

२. प्रश्नोत्तर - इसमे शिक्षक छात्रों से प्रश्न पूछते हैं।

३. कहानी सुनना

४. श्रुतलेख (इमला) / Dictation = इसमे शिक्षक सामग्री को मौखिक रूप से बोलते हैं, तथा छात्र के द्वारा सुनकर लिखता जाता है।

५. भाषण :- इसमें शिक्षक छात्रों के सामने भाषण दिया जाता है, तथा छात्र उसे ध्यान से सुनते है।


पवन (पढ़ना) कौशल की शिक्षण विधियाँ :

→ शिक्षक द्वारा छात्रों को वर्ण बोध कराना

→ उच्चारण करवाना

→ सम्पूर्ण से अंश विधि - इस विधि के अनुसार पहले बच्चे को सम्पूर्ण वाक्य सिखाना चाहिए उसके बाद शब्द तथा वर्ण। इसे वाक्य विधि भी कहते है।

→ अनुकरण विधि – इसमें शिक्षक बच्चों के सामने पढ़ते हैं, तथा बच्चे उसका अनुकरण करते हुए पढ़ते जाते हैं।


पाठन के प्रकार :

सस्वर पढन:- स्वर सहित अर्थात आवाज के साथ बोल - बोलकर पढ़ते हुए अर्थ ग्रहण करने को सस्वर पढ़न कहा जाता है। यह पढ़न बच्चों को वर्णमाला सिखाने में सर्वाधिक उपयोगी है।

आदर्श पठन:- भाषा के सम्पूर्ण शुद्ध रूप गति यति आरोह-अवरोह स्वराघात व बालघात आदि को ध्यान में रखकर जो पठन किया जाता है, वह आदर्श पठन कहलाता है। यह मुख्यतः शिक्षक या भाषा विद्वानों द्वारा होता है।

मौन पाठन:-  जिस लिखित सामग्री को जिना अवाज किए उपचाप मन ही मन में पढ़ते हैं। तो मौन पठन कहते है। ऐसा पहन गहन अध्ययन तथा अर्थ को गहनता से समझने के लिए किया जाता है।

गम्भीर पठन:- नये ज्ञान की प्राप्ति के लिए या भाषा पर अधिकार प्राप्त करने के लिए जो पठन किया जाता है। उसे गम्भीर पढ़न कहते है।

द्रुत पठन:- सीखी हुई भाषा का अभ्यास करने के लिए, आनन्द के लिए, साहित्यिक जानकारी जानकारी के लिए ऐसा पहन किया जाता है। 

वैयक्तिक पठन:- ऐक व्यक्ति द्वारा किया जाने वाले सस्वर पढ़न को वैयक्तिक पहन कहते है। यह सस्वर पठन का भाग है।

सामूहिक पठन:- दो या दो से अधिक छात्रों द्वारा ‘सुस्तर पठन को सामूहिक पढ़न कहते हैं, यह भी सस्वर पहन का भाग है।


बोलना (मौखिक अभिव्यक्ति) कौशल की शिक्षण विधियाँ –

१. बातचीत / वार्तालाप

२. सस्वर पढ़न

३. प्रश्नोत्तर

४. कहानी सुनना व सुनाना